रामबन के परनोट गांव के कई मकानों में आई दरारें, सुरक्षित स्थान पर भेजे गए लोग; जांच के लिए पहुंची टीम

रामबन जिले में रामबन-गूल मार्ग पर जमीन धंसने से परनोट गांव में कई मकान क्षतिग्रस्त हो गए। विशेषज्ञों की टीम कारणों की जांच के लिए दिल्ली से परनोत पहुंची।  जम्मू विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों की टीम भी क्षेत्र में अध्ययन करने के लिए जाएगी। मकानों में दरार के चलते प्रशासन ने लोगों को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया है, मार्ग बंद हो गया है और पूरे क्षेत्र में भारी नुकसान हुआ है। अब जमीन धंसने के कारणों की जांच के लिए दिल्ली से एक टीम रामबन में पहुंची है।

रामबन-गूल मार्ग पर परनोत की दो पंचायतें स्थित हैं। परनोत-ए और परनोत-बी। परनोत-ए पंचायत में जमीन धंसी है और इससे करीब तीन से चार किलोमीटर का पूरा क्षेत्र प्रभावित है और लगातार अभी भी जमीन धंस रही है। इस पूरे क्षेत्र को पहले से ही सिंकिंग जोन भी कहा जाता है। यहां की मिट्टी के सैंपल लेकर जांच की जाएगी। अधिकारिक तौर पर तो जमीन धंसने के कारणों के बारे में कुछ भी नहीं कहा जा रहा है

विश्वविद्यालय के प्रोफेसर भूस्खलन पर कर रहे शोध

इस क्षेत्र में यह देखा गया है कि यहां पर पहाड़ों को काटते समय विशेषज्ञों की राय नहीं ली जाती है। यही कारण है कि इस पूरे क्षेत्र में जमीन धंसती जा रही है। उनका कहना है कि जल्दी ही उनकी पूरी टीम इस क्षेत्र का दौरा करेगी और यहां की मिट्टी के सैंपल लेकर अपनी रिपोर्ट देगी। हालांकि यह अधिकारिक टीम नहीं है मगर विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों की यह टीम जनहित में इस पूरे क्षेत्र में होने वाले भूस्खलनों पर शोध कर रहे हैं।

पहले भी हुए हादसे

रामबन व डोडा जिले में इसी प्रकार के मामले पहले भी सामने आए हैं। इसी वर्ष फरवरी महीने में रामबन के दुकसर दलवा गांव में जमीन धंसने के कारण चालीस घरों और एक स्कूल की इमारत में दरारें आ गई थी। यही नहीं डोडा जिले के ठाठरी क्षेत्र में भी कई मकानों और दुकानों में दरारें आई थी। तब विशेषज्ञों की एक टीम ने जांच में यह पाया था कि इस ठाठरी में जमीन धंस नहीं रही है। क्षेत्र में ढांचागत निर्माण कार्य की प्रणाली को सही तरीके से अपनाया नहीं गया। नालियों की व्यवस्था सही नहीं थी।

पहले हुआ था अध्ययन

जिस क्षेत्र में जमीन धंसने के कारण मकान क्षतिग्रस्त हुए हैं, वहां पर पहले स्लाटर हाउस बनाने का प्रस्ताव भी था। अधिकारियों का कहना है कि इसके लिए दस करोड़ रुपये मंजूर भी हुए है लेकिन जब इस क्षेत्र की मिट्टी के सैंपल लेकर अध्ययन हुआ तो इस क्षेत्र को निर्माण के योग्य नहीं समझा गया। यहां पर स्लाटर हाउस नहीं बनाया गया। उनका कहना है कि अगर बिना अध्ययन के स्लाटर हाउस बनाया होता तो वे भी क्षतिग्रस्त हो जाता।

जियोलॉजी और माइनिंग के निदेशक पवन सिंह राठौड़ ने कहा कि हमसे जब भी कोई विभाग या कोई पीएसयू किसी क्षेत्र का सर्वे करने के लिए कहता है तो हमारी टीम मौके पर जाती है। अभी रामबन से किसी ने भी इस हादसे के बाद सर्वे के लिए नहीं कहा है। अगर कहा जाएगा तो जरूर क्षेत्र का सर्वे किया जाएगा।

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