उमर का सियासी स्टंट, एक ही समय पर पापा डॉ फारुक अब्दुल्ला गेट से गए और बेटा उमर अब्दुल्ला दीवार फांद कर गया, आम कश्मीरियों की तीव्र प्रतिक्रिया, कहा- चुनावी वादों पर ध्यान दें

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का नाटकीय अंदाज पूरे कश्मीर और देश-दुनिया ने देखा। 13 जुलाई 1931 की हिंसा में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के नाम पर हुआ हंगामा दिनभर इंटरनेट मीडिया पर ट्रेंड करता रहा।

कुछ लोग इसे सियासी ड्रामा बताने से नहीं चूके। यहां बता दें कि उमर ने 13 जुलाई के मुद्दे पर रविवार को पूरी सरकार को बंधक बनाने का आरोप लगाया था। सोमवार को वह प्रमुख नेकां नेताओं के साथ मारे गए लोगों की मजार पर पहुंच गए और इस दौरान उनका वीडिया गेट कूदते हुए प्रसारित हो गया। हालांकि उनके पिता डॉ फारुक अब्दुल्ला इसी स्थान पर उसी समय गेट के रास्ते से दाखिल हुए थे।

कश्मीर के आम लोगों ने कहा कि सरकार पर अब चुनावी वादे पूरा करने का दबाव है और शायद इससे बचने के लिए वह इस तरह की हरकते कर रहे हैं। वहीं कुछ लोगों ने उमर से सहानुभूति जताई। यहां बता दें कि उमर कुछ दिनों से केंद्र सरकार से नजदीकियों के कारण चर्चा में रहे थे।

व्यवसायी अशफाक, रज्जाक और मुदस्सर ने कहा कि उमर व उनकी फौज (कैबिनेट मंत्री और नेकां नेता) ने जो ड्रामा रचा यह सिर्फ मीडिया में पब्लिसिटी पाने के लिए था। ऐसी हरकतों से बाहर क्या संदेश जाएगा। वहीं कुछ लोगों ने कहा कि इंटरनेट मीडिया पर जो भी प्रसारित हो रहा है वह ठीक नहीं है। उमर जम्मू-कश्मीर का प्रतिनिधित्व करते हैं।

ऐसी हरकतें कर यह लोग (उमर और उनकी पार्टी ) केवल हम से हमदर्दी बटोरना चाहते हैं। उन्होंने चुनावी समय में हमसे किए वादे तो पूरे किए नहीं। अब ऐसे हथकंड़ों से वह हम आम लोगों से हमदर्दियां बटोरना चाहते हैं। यह साबित करना चाहते है कि वह भी हमारी तरह बेबस है। हमें पूरी तरह पता है कि ऐसा वह अपनी कर्सी बचाने के लिए कर रहे हैं। उन्हें आम लोगों से कोई लेना देना नही है। दाऊद, स्थानीयवासी

सरकार को यह भी समझबूझ नहीं कि पहलगाम हमले के बाद पैदा हुए हालात के चलते आम लोग कितनी दिक्कतें झेल रहे हैं। सरकार दावा कर रही है कि वह पर्यटन व बाकी सेक्टरों को पटरी पर लाने के लिए जी तोड़ कोशिशें कर रहे हैं। चलो मान लेते हैं। यह सरकार कोशिशें कर रही हैं। फायदा,आज जो कुछ इस सरकार के प्रतिनिधियों ने सड़कों पर किया,उससे आप खुद अंदाजा लगाइए कि उनकी कोशिशों का क्या हासिल होगा। मोहम्मद सलीम गनई 

13 जुलाई आया, गुजर गया। हम भूल भी गए हैं इस मुद्दे और इससे जुड़े विवादों को। नेकां सरकार यह मामला उछाल कर पता नहीं क्या साबित करना चाहती है। हम यह दर्द नहीं पालते। हमें तो बस अपने रोजगार की फिक्र हैं,अपने बाल बच्चों के फ्यूचर का ख्याल है कि उन्हें कैसे पढ़ाना है, आगे बढ़ाना है। यह सरकार ऐसी हरकतें कर न सिर्फ अपनी बल्कि पूरे कश्मीरियों की छवि खराब कर रही है। सरफराज अहमद, स्थानीयवासी

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