भारत सरकार ने सिंधु जलसंधि को स्थगित करने के बाद, चिनाब नदी पर निर्माणाधनी जलविद्युत परियोजनाओं में बदलाव की संभावनाओं पर काम शुरु कर दिया है। प्रस्तावित बदलाव में इन परियोजनाओं के बांधों ऊंचाई बढ़ाने के साथ साथ स्लुइस गेट का निर्माण शामिल है, ताकि जलाशयों में अधिक पानी जमा करने के साथ साथ नीचे की ओर पानी के प्रवाह को नियंत्रित किया जा सके।
इसके साथ जम्मू में रणबीर नहर की लंबाई को 60 से 120 किलोमीटर तक विस्तार देने के साथ साथ केंद्र सरकार ने सिंधु और चिनाब के पानी को पंजाब-हरियाणा-राजस्थान तक पहुंचाने के लिए 113 किलोमीटर लंबी नहर जिसका एक बड़ा हिस्सा सुरंगों पर आधारित होगा के निर्माण की योजना पर भी काम शुरु कर दिया है। परिस्थितियों के अनुकूल रहने पर सरकार ने प्रस्तावित नहर को अगले तीन वर्ष में पूरा करने का लक्ष्य रखा है।
संबधित अधिकारियों ने बताया कि भारत सरकार के जलशक्ति मंत्रालय की तरफ से एक पत्र प्राप्त हुआ है जिसमें रतले, किरू,क्वार और पकल दुल जलविद्युत परियोजनाओं के निष्पादन में जुटी एजेंसियों को संबधित परियोजनाओ की निर्माण योजना में अपेक्षित बदलाव की संभावनाओं पर का करने को कहा गया है।
पत्र का संज्ञान लेते हुए इन परियोजनाओ के डिजाइन और ड्रांईंग में आवश्यक संशोधन पर काम किया जा रहा है। उन्होने कहा कि डिजाईन और ड्राईंग के संशोधित योजना मिलने के बाद ही पता चलेगा कि किस परियोजना के बांध की कितनी ऊंचाई बढ़ेगी और कहां कितने स्लुईस गेट बनाए जाएंगे।
उन्होंने बताया कि सिंधु जलसंधि के कारण भारत सरकार चिनाब दरिया पर बांध और जलविद्युत परियोजनाएं तो बना सकती है,लेकिन बांध की ऊंचाई एक निश्चित सीमा तक ही रख सकती है। इसके अलावा वह जलप्रवाह नहीं रोक सकती। उसे चिनाब या झेलम दरिया पर अगर कोई बांध या जलविद्युत परियोजना तैयार करनी है तो उसे पहले पाकिस्तान को सूचित करना है। उसे संबधित परियोजना का ब्यौरा भी देना है।
पाकिस्तान अगर आपत्ति जताए तो उसकी आपत्तियों के मुताबिक निर्माण योजना में फेरबदल भी किया जा सकता है। पाकिस्तान के प्रतिनिधि और विशेषज्ञ समय समय पर आकर चिनाब, झेलम और सिंध पर निर्मित परियोजनाओं का जायजा लेते थे लेकिन सिंधु जलसंधि को स्थगित करने के बाद भारत सरकार अब पाकिस्तान की सहमति के लिए बाध्य नहीं है।
अब हम अपनी इच्छानुसार, चिनाब पर जलविद्युत परियोजनाओं को तैयार कर सकते हैं, उसके पानी का अपनी मर्जी से इस्तेमाल कर सकते हैं। मौजूदा परिस्थितियों में भारत सरकार इसका ही लाभ लेना चाहती है।
इस बीच, संबधित सूत्रों ने बताया कि 850 मेगावाट की क्षमता वाली रतले जलविद्युत परियोजनाओं के लिए बांध की ऊंचाई 133 मीटर तय की गई है जिसे अब 15 मीटर तक बढ़ाया जा सकता है। पकल दुल जलविद्युत परियोजना के बांध की ऊंचाई पहले ही 167 मीटर रखी गई है जो भारत में अब तक किसी भी जलविद्युत परियोजना के तहत बांध के सबसे अधिक ऊंचाई है। अब इसे भी बढ़ाया जाएगा।
पकल दुल परियोजना एक हजार मेगावाट की है। 540 मेगावाट की क्षमता वाली क्वार परियोजना के बांध की ऊंचाई भी बढ़ाने का प्रस्ताव है। उन्होंने बताया कि अगर किसी परियोजना के बांध की ऊंचाइ्र बढ़ाने में दिक्कत आएगी या ऊंचाई नहीं बढ़ाई जाएगी तो वह 634 मेगावाट की किरु परियोजना है। इस परियोजना में बांध का काम 50 प्रतिशत से ज्यादा पूरा हो चुका है।
उन्होंने बताया कि किस बांध की कितनी ऊंचाई बढ़ेगी और किस योजना में कितने स्लुइस गेट बनेंगे, यह अंतिम ड्राइ्रंग प्रापत होने के बाद ही तय हो पाएगा। फिलहाल, सुरंग व अन्य कार्यों को रोका गया है और बांधों के निर्माण पर जोर देने के लिए कहा गया है। बांधों की ऊंचाई बढ़ने से संबधित जलाशयों का भी विस्तार होगा, उनमें पानी ज्यादा जमा होगा।
इस बीच सिंधु और चिनाब के पानी को जम्मू- कश्मीर से पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में पानी ले जाने के लिए 113 किलोमीटर लंबी नहर के निर्माण की योजना पर भी केंद्र सरकार ने काम शुरू क दिया है। यह नहर चिनाब नदी को रावी-ब्यास-सतलुज नदी प्रणाली से जोड़ेगी।